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कुल –गीत

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वीर उर्वरा धरती जिसको कहते राजस्थान,  
मुक्त भाव से बाँट रहा है चहुँ दिश मेँ अब ज्ञान ।
वर्धमान – महावीर – खुला विश्वविद्यालय ॥
सा विद्या या विमुक्तये, सा विद्या या विमुक्तये ॥
   
चाहे महल अमीरोँ के होँ या निर्धन की  ढाँणी ,
भेद नहीँ करती है किँचित यह शिक्षा की आँधी ।
द्वार खुले हैँ इस मन्दिर के सरल प्रवेश नियम हैँ
मिले उच्च शिक्षा वँचित को अवसर बहुत सुगम हैँ  ।

ज्ञान यज्ञ की समिधा मिलना हुआ बहुत आसान ।
मुक्त भाव से बाँट रहा है चहुँ दिश मेँ अब ज्ञान ॥
सा विद्या या विमुक्तये, सा विद्या या विमुक्तये ॥  

सुविधाओँ की सरिता बहती, बना नवल इतिहास,

है जनतँत्रीकरण ज्ञान का, जनता का विश्वास ।

नव आशाएँ, नई दिशायेँ, नई नई तकनीक

जन जन मेँ शिक्षा प्रसार की थामी इसने लीक ।

तपोभूमि यह , नव शोधोँ का होता है सम्मान ।

मुक्त भाव से बाँट रहा है चहुँ दिश मेँ अब ज्ञान ॥
सा विद्या या विमुक्तये, सा विद्या या विमुक्तये ॥ 

मोर, पपीहे, कोयल का स्वर, हरी भरी लतिकायेँ,
चम्बल की कल कल सँग बहतीँ शीतल मँद हवायेँ ।
गोद प्रकृति की बसा भुवन जीवन सँगीत सुनाये

नई भोर का नव सूरज बन नूतन अलख जगाये ।
विद्या का यह प्राँगण  करता है सबका आह्वान
मुक्त भाव से बाँट रहा है चहुँ दिश मेँ अब ज्ञान ॥
वर्धमान – महावीर – खुला विश्वविद्यालय ॥
सा विद्या या विमुक्तये, सा विद्या या विमुक्तये ॥